Success Story: जिस ऑफिस में मां लगाती थी झाड़ू, बेटा मेहनत करके बना बड़ा अफसर
माँ ने कड़ी मेहनत करके अपने बेटे को बना दिया बड़ा अफसर. जिस ऑफिस में माँ कभी करती थी झाड़ू पोंछे का काम, आज वहां बड़े अफसर के पद पर नौकरी करता है बेटा

Motivational Story. अंग्रेजी में एक कहावत है ‘लेबर नेवर गोज अनरिवॉर्डेड’. सचमुच परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता है. बिहार से ऐसी ही एक प्रेरक कहानी सामने आई है. जिस कार्यालय में मां कभी झाड़ू लगाया करती थी, उसी कार्यालय में अब उसका बेटा अफसर बनकर आया है.
जीवन में काफी किया है संघर्ष
यह कहानी है अलवर जिले के अगिला की सावित्री देवी की. सावित्री देवी का जीवन संघर्षपूर्ण रहा है. नौकरी लगने से पहले गांव में किराना दुकान के बल पर सावित्री अपने परिवार का भरण-पोषण करती थी. उनके पति राम बाबू प्रसाद पेशे से किसान थे. इन दोनों कड़ी मेहनत से किसी तरह परिवार का भरण-पोषण चल रहा था. साल 1990 में बिहार सरकार में चतुर्थवर्गीय कर्मचारी की वेकेंसी निकली. सावित्री देवी 8वीं पास हैं. उन्होंने नौकरी के लिए आवेदन दे दिया. सावित्री देवी को यह सरकारी नौकरी मिल गई. इस सामान्य कृषक परिवार के लिए यह बड़ी उपलब्धि थी.
कठिन मेहनत करके बनना है बड़ा साहब
जिस समय में सावित्री देवी को नौकरी मिली, उस समय उनका बेटा मनोज कुमार मैट्रिक का छात्र था. नौकरी के बल पर उसकी पढ़ाई का खर्च भी निकलने लगा था. सावित्री देवी की पहली पोस्टिंग बिहार सचिवालय में हुई, उसके बाद गया और फिर 2003 में जहानाबाद में. 2006 में फिर पटना सचिवालय आ गईं और वहीं से 2009 में उन्हें सेवानिवृत्ति मिली.
खुशी से चहकते एसडीओ मनोज कुमार और दाएं उनकी मां सावित्री देवी.
इस बीच उनका बेटा मनोज कुमार अनुमंडल पदाधिकारी के पद पर जहानाबाद में तैनात हुआ. विद्यार्थी जीवन में मनोज कुमार को जब कभी मां से मिलने की इच्छा होती थी, वे अनुमंडल कार्यालय जहानाबाद आते थे. तब ही उन्होंने मन में निश्चय कर लिया था कि पढ़-लिखकर मैं भी बड़े साहब की तरह कुर्सी पर बैठूंगा.
जहाँ माँ लगाती थी झाड़ू , वहां आज बीटा है एसडीओ
मनोज कुमार बताते हैं कि उनकी मां इसके लिए हमेशा उन्हें प्रेरित करती थी. इसी का नतीजा है कि आज वे उसी कार्यालय में एसडीओ के पद पर विराजमान है, जहां उनकी मां झाड़ू लगाया करती थी. एसडीओ के रूप में पहली पोस्टिंग उनकी जहानाबाद में ही हुई. इससे पहले वे पटना में ग्रामीण विकास विभाग में अधिकारी रहे थे, जहां से नौकरी की शुरुआत हुई थी. सावित्री देवी की मानें तो बेटे को देखकर उन्हें गर्व की अनुभूति होती है.